यूँ ही तन्हाई में हम खुद को सज़ा देते है
नाम लिखते है दोस्तों का और लिख के मिटा देते है
अब खुशी की कोई तरकीब न करे दुनिया
अब ये आलम है उनके ग़म में मज़ा लेते है
और तसल्ली नहीं दी जाती है 'काफिर' दिल को
देखने वाले तो अब मरने की दुआ देते है
वह और थे जो हो गए इस खेल में ‘फना’
हम तो जीकर रोज़ मरने का सिला लेते है
नाम लिखते है दोस्तों का और लिख के मिटा देते है
यूँ ही तन्हाई में हम खुद को सज़ा देते है...
दुश्मनों से अब कोई शिकवा नहीं, दोस्तों ने भी तो पहचाना नहीं
ज़िंदगी से हस के यूँ मिलता हूँ मैं,जैसे दर्द से मेरा रिश्ता ही नहीं ....
मौत नहीं हम खुदा से ज़िंदगी मांगते है,
तेरे दिए ये हसीं ग़म को जीने के लिए साँसे मांगते है...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Yun hi tanhayi mein hum khud ko sazaa dete hai
Naam likhte hai doston ka aur likh ke mita dete hai
ab khushi ki koi tarkeeb na kare duniya
ab ye aalam hai unke gham mein mazaa lete hai
aur tasalli nahi di jaati hai 'kaafir' dil ko
dekhne waale to ab marne ki dua dete hai
woh aur the jo ho gaye is khel mein ‘fanaa’
hum to jeekar roz marne ka sila lete hai
naam likhte hai doston ka aur likh ke mita dete hai
Yun hi tanhaayi mein hum khud ko sazaa dete hai...
Dushmano se ab koi shikwa nahi, Doston ne bhi to pehchana nahi
Zindagi se has ke yun milta hun main,Jaise dard se mera rishta hi nahi ....
Maut nahi hum khuda se zindagi maangte hai,
Tere diye ye haseen gham ko jeene ke liye saansein maangte hai...
1 comment:
आपका ब्लाग देखकर मुझे प्रसन्नता हुई। हिंदी के ब्लाग एक जगह दिखाने के लिये नारद, चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी नाम के फोरम हैं। क्या आपके ब्लाग वहां दिखाई देते हैं। अगर नहीं तो वहां पंजीकृत अवश्य करायें। इससे आपको पाठक तथा लेखक अधिक संख्या में मिलेंगे। अगर कोई असुविधा हो तो मुझे बतायें मैं उनको सूचित कर दूंगा। अगर आप हिंदी में लिखते है तो फिर बाकी लेखकों से दूरी क्यों?
दीपक भारतदीप
Post a Comment