बाद मरने के मेरे शायद वो आ जाये
मेरी कब्र पे भूले से शमा जला जाये
जिस तरह रोये हैं हम उनकी फुरकत में
वो भी तन्हाई में दो आसू बहा जाये
जो भी अरमान जगाये थे मुझ में चाहत के
अब के आ कर वो हर वादा निभा जाये
उम्र भर तड़पती रही रूह उनकी खुशबू को
सजा के मय्यत मेरी वो उसे महका जाये
गिला “अली” को रहा यूं तो ज़िंदगी से लेकिन
क्या पता आज उसका हर शिकवा मिटा जाये...
Baad marne ke mere shayad wo aa jaye
Meri qabr pe bhule se shama jala jaye
Jis tarha roye hai hum unki furkat me
Wo bhi tanhai me do aasu baha jaye
Jo bhi armaan jagaye the mujh me chahat ke
Ab ke aa kar wo har waada nibha jaye
Umr bhar tadapti rahi rooh unki khushboo ko
Saja ke mayyat meri wo use mehka jaye
Gila “ ali” ko raha yun to zindagi se lekin
Kya pata aaj uska har shikwa mita jaye...
~Syed Azmat Ali Alvi
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